
नेपाल में जारी राजनीतिक उथल-पुथल और जेन-जी आंदोलन के चलते हालात बेकाबू हो चुके हैं। स्थिति को काबू में करने के लिए नेपाल आर्मी ने कर्फ्यू लागू कर दिया है, जिसके बाद से भारत-नेपाल सीमा पर स्थित रूपईडीहा बॉर्डर पूरी तरह सील है।
इसका सीधा असर दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार पर पड़ा है। रोज़ाना सैकड़ों ट्रक जो बहराइच के रूपईडीहा बॉर्डर से नेपाल में माल ले जाते थे, अब वहीं फंसे हुए हैं।
ट्रक रुके, सप्लाई चेन भी ब्रेक में
जहां पहले हर दिन 300-500 ट्रकों का आना-जाना सामान्य बात थी, अब कई दिन से ट्रक लगातार लाइन में खड़े हैं।
ड्राइवरों को होटल नहीं, ट्रक की छांव में रात गुज़ारनी पड़ रही है।
अंतरिम सरकार का इंतजार = ट्रकों की कतार
नेपाल में अभी कोई स्थायी सरकार नहीं है। जेन-जी आंदोलन के बाद पुराने नेता आउट और अब इंटरिम गवर्नमेंट बनने का इंतजार है।
जब तक ये सरकार नहीं बनती, तब तक कर्फ्यू हटने और बॉर्डर खुलने की कोई उम्मीद नहीं है। सीमा पर खड़ी ट्रकों की लंबी कतारें इस राजनीतिक अस्थिरता की सबसे बड़ी गवाह बन चुकी हैं।
भारत-नेपाल रिश्ते की असली परीक्षा
बॉर्डर पर रुका व्यापार ये बताता है कि नेपाल और भारत के रिश्ते सिर्फ कागज़ पर नहीं, कंटेनर पर भी चलते हैं। हालांकि भारत की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, पर व्यापारिक हलकों में बेचैनी साफ दिख रही है।

अगर जल्द ही नेपाल में राजनीतिक स्थिरता नहीं आती, तो इसका असर न सिर्फ ट्रांसपोर्ट सेक्टर बल्कि दैनिक जीवन से जुड़े जरूरी सामानों की सप्लाई पर भी पड़ेगा।
Supply बंद = घाटा चालू
नेपाल के व्यापारियों का कहना है कि बॉर्डर बंद होने से फलों और सब्ज़ियों की सप्लाई रुक गई है। दवाओं और FMCG सामान की कमी हो सकती है, महंगाई बढ़ने का खतरा है और भारत में भी कुछ व्यापारियों को घाटा उठाना पड़ेगा
Politics वहां हो रही है, पर तकलीफ यहां भी है
नेपाल की राजनीतिक उठापटक का असर सिर्फ संसद भवन तक सीमित नहीं है। रूपईडीहा बॉर्डर पर खड़े ट्रकों से लेकर हर उस ड्राइवर तक, जो सामान लेकर सीमा पार करना चाहता है — हर किसी के लिए ये इंतजार भारी है।
अब देखना है कि इंटरिम सरकार बनती है पहले या ट्रक ड्राइवर अपनी किस्मत को कोसते-कोसते बॉर्डर छोड़ देते हैं।
नेपाल को मिली नई दिशा, मगर रास्ता अभी भी ‘इंटरिम’ है